...

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*****बिखरता बचपन ******
नन्हे नन्हे कँधे हैं , और बोझ परिवार का उठाते हैं,
हर दिन हर पल ,शोषण की चक्की में पिसते जाते हैं,

कोई नही समझ पाता ,इनके नन्हे से कंधों का ग़म,
होंठो पर मुस्कान है झूठी, आँखे हरदम रहती नम,

भविष्य भारत देश का देखो , मारा मारा फिरता है,
नन्हे नन्हे पैरों से ,पल पल चलता , उठता ,गिरता है,

कल न जाने क्या होगा , जब वर्तमान ही बेबस है,
शोषण की भट्टी में जलता ,आज बेचारा बचपन है ।।

-पूनम आत्रेय