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शीर्षक: मृत्युदंड क्या सही मापदंड?
मृत्युदंड क्या सही मापदंड है,

दोषी या निर्दोष होने का?

इंसान के प्रत्येक कार्य के पीछे कई कारण होते हैं,

क्या वक्त है किसी के पास ये सोचने का?


मृत्युदण्ड क्या सही मापदण्ड है

अगर जुर्म साबित हो जाये तो?

जड़ें कहांँ हैं इस जुर्म की मानसिक्ता की,

क्या वक्त है किसी के पास इस चिंतन का?


मैं जो सोचती हूंँ तू ये पाती हूंँ,

मृत्युदंड नहीं है हाल जुर्मों को रोकने का,

सज़ा जुर्म को मिलनी चाहिए,

लक्ष्य यही हो न्याय तंत्र का।


मृत्यु दंड से भला स्वे चिंतन है,

जो कारावास में निरंतर करवाया जाये,

क़ैदियों को अन्तर्मन में झांकना सिखाया जाए,

क्या आज समाज को होश है इस विकल्प का?


कला ध्यान की सीखाई जाये

जेल के बाशिंदो को,

ख़ुद से मिलवाया जाए

जुर्म के कारिन्दो को।

फ़िर देर से ही सही,

बदलाव निश्चित है,

ख़ुद को पा लेने में ही

समसया का समाधान नीहित है।


जड़ जुर्म की हमारे अंदर ही छुपी हुई है कहीं,

हर आत्मा अचाई बुराई का संगम है,

मृत्युदंड नहीं ख़ुद की खोज वह हल है,

अध्यात्म ही एक मात्र रास्ता है ,
जुर्म को मुहतोड़ जवाब देने का।
© Haniya kaur