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कहीं कोई,,,
कोई खामोश बैठा है, किसी ने शोर मचाया है,,
आज फिर कोई रोया है,किसी ने रुलाया है,,
ख्वाहिशें बिखरी हैं,,किसी के ख्वाब टूटे हैं,,,
किसी ने नए ख्वाबों को आंखों में सजाया है,
कहीं गमों की धूप में कोई नंगे पांव खड़ा है,,
कहीं किसी ने इर्द गिर्द शमा ए मुसर्रत जलाया है,,,
कहीं मंजिलों के राही रस्ते में भटक गए,,
कहीं किसी ने नई मंजिलों का नया रस्ता बनाया है,,,
कहीं कोई किसी को बीच रस्ते में छोड़ आया है,,
कहीं किसी ने सफ़र में हमसफर गंवाया है,,,
© Tahrim
आज फिर कोई रोया है,किसी ने रुलाया है,,
ख्वाहिशें बिखरी हैं,,किसी के ख्वाब टूटे हैं,,,
किसी ने नए ख्वाबों को आंखों में सजाया है,
कहीं गमों की धूप में कोई नंगे पांव खड़ा है,,
कहीं किसी ने इर्द गिर्द शमा ए मुसर्रत जलाया है,,,
कहीं मंजिलों के राही रस्ते में भटक गए,,
कहीं किसी ने नई मंजिलों का नया रस्ता बनाया है,,,
कहीं कोई किसी को बीच रस्ते में छोड़ आया है,,
कहीं किसी ने सफ़र में हमसफर गंवाया है,,,
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