...

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मेरी दोस्ती
मैने कभी कुछ छुपाया नहीं तुमसे, मैं तो हर बात तुम्हें बताती थी
खुद को सुदामा और तुम्हें भगवान श्रीकृष्ण जैसे समझती थी,,,

खुली किताब थी मैं और शायद आज भी वैसी हूं मैं,,
करना चाहती हूं कभी दिखावा अगर,,
तो कर ना पाऊं कभी भी मैं,

केवल अपनेपन की अभिलाषी थी मैं,,
शायद मनोबल अपना सम्भाल पाती...