ईश्वर...!
ईश्वर...
नाम की उस असीम
सत्ता को
दखलंदाजी
पसंद
नहीं...
न तुम्हारी
उसके कामों में...
न ख़ुद की
तुम्हारे जीवन
में...
वह छोड़ देता है
सबको
सबकी...
मर्ज़ी पर...
"छ:इंद्रियों का उपहार देकर"
नाम की उस असीम
सत्ता को
दखलंदाजी
पसंद
नहीं...
न तुम्हारी
उसके कामों में...
न ख़ुद की
तुम्हारे जीवन
में...
वह छोड़ देता है
सबको
सबकी...
मर्ज़ी पर...
"छ:इंद्रियों का उपहार देकर"
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