अंतर्जाल-ए-मोहब्बत
अंतर्जाल-ए-मोहब्बत
अब चेहरा कम अल्फाज़ ज्यादा पढ़ते लगे हैं
अल्फाज़ो ही अल्फाज़ो में इश्क़ गढ़ने लगे हैं
ढूंढे हैं सुकून विकलता-ए-दिल का वो अपना
ऐसे हैं वो अल्फाजों के ख्यालों में जीने लगे हैं
कौन कहां से हैं किधर का हैं...
अब चेहरा कम अल्फाज़ ज्यादा पढ़ते लगे हैं
अल्फाज़ो ही अल्फाज़ो में इश्क़ गढ़ने लगे हैं
ढूंढे हैं सुकून विकलता-ए-दिल का वो अपना
ऐसे हैं वो अल्फाजों के ख्यालों में जीने लगे हैं
कौन कहां से हैं किधर का हैं...