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"कुसंस्कारी"
परिवार और संस्कार ये दोनों शब्द आज अपनी गरिमा खोते जा रहें हैं। ये दोनों ही तो हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास और वीर गाथा की पहचान है। आज इन दोनों के विघटन ने सबसे ज्यादा नुकसान किया है वैवाहिक संबंधों का,वृद्ध माता-पिता का एवं छोटे बच्चों का। मनुष्य का आचरण में उसकी शिक्षा,समाज एवं माता-पिता का योगदान होता है। इन तीनों स्तंभों में सबसे ज्यादा मूल्यवान है माता-पिता का अपने बच्चों के अंदर दिए जाने वालें संस्कार। बेटा-बेटी में कोई अंतर नही,ये कटु सत्य है परंतु दोनो की परवरिश में भिन्नता का होना जरूरी है । बेटे को सारे जीवन माता-पिता के साथ रहना है सो वो अपने पैरों पर खड़ा हो ये सबसे पहली प्राथमिकता होती है परंतु बेटियों को विवाह के पश्चात अपने पति के पास रहना है अतः उनके अंदर ऐसे संस्कार और सूझ-बूझ का गुण देना आवश्यक है जो दूसरे परिवार में समनाजस्य बिठाने में उसकी मदद करें। मानसिक रूप से बेटी के विवाह के बाद का समय कुछ सालों तक बहुत कठिन होता है परंतु इस समय माता-पिता को चाहिए बेटी को मानसिक तौर बेवजह की सहानुभूति न दिखाई,प्रेम दिल मे रखे परंतु उसे बेटी के गृहत जीवन मे हस्तछेप की वस्तु ना बनने दें। क्योंकि आपके बेटी का पति भी इसी दौर से गुजर रहा होता है और आपका प्रेम उसके वैवाहिक जीवन के लिए...