...

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कलयुग
ये काल कैसा हर शक्श को रुला रहा
इंसा ही आज इन्शानियत को भुला रहा
चोट लगी उसको मरहम की फिक्र नही
भूखा पेट उसे हर वक्त भगा रहा
गुनाहों की सजा यहाँ मिलती नही
गीता और कुरान में लोगो को बांटा जा रहा
ये काल कैसा हर शख्स को रुला रहा