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आखिर हूँ तो तेरा ही ना!
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चलती मर्जी मेरी तुमपे ही ना,
होती अर्जी पूरी तुमसे ही ना।
किसपे इतराउं कहाँ इठलाऊँ,
हदें सारी तुम तक ही ना।
उल्फत तुम तक, रूसवाई भी,
ज़िद तुम तक , अंगड़ाई भी।
कागज़ तुम ही, रोशनाई भी,
गजल तुम से, परछाई भी।
बेबाक लब्ज़ तुम तक ही ना,
खिलती हसीं तुमसे ही ना।
यूँ नाराज़ ना हुआ कर मेरी मोना,
आखिर हूँ तो तेरा ही ना।

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हूँ अगर पागल, पगली तुम्ही ना,
बहके भी कभी, संभाली तुम्ही ना।
हूँ अगर क़िताब कहानी तुम्ही ना,
हूँ अगर जिंदगी,जिंदगानी तुम्हीं ना।
मांगूँ क्या, मन्नत तुम्हीं ना,
देखूँ क्या, जन्नत तुम्हीं ना।
रब भी तुम, मेरी रबानी तुम्हीं ना,
रगों में उमड़ती जवानी तुम्ही ना।
जो मन करूँ, जहाँ मन जाऊं,
आख़िर मंजिल तो तुम्हीं ना।
यूँ नाराज़ ना हुआ कर ओ सोना
आख़िर हूँ तो तेरा ही ना!

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© jindagi