...

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#बचपन
कुछ पुराने ख़याल हैं,
माज़ी के कुछ सवाल हैं।


कोई किताब का पन्ना है जो कश्ती ना बन पाया,
किसी साइकिल का टायर है जो अँधेरे गैरेज में कैद है,
एक लकड़ी का तख्ता है जिसमें बेयरिंग लगने थे,
एक आँगन सूना है जिसमें चॉक कीं लकीरें सजने थे,
कुछ पिचकारियाँ हैं जिनमें रंग नहीं भरते,
कुछ पटाखे हैं जो अब नहीं जलते,
कहाँ किसी खेल का हिस्सा हूँ मैं,
वो बैट पूछता है अब किसका हूँ मैं?




और भी कईं उदास हैं
हमारी राह देख रहे,
हमको कहाँ एहसास है।


इनको कभी ये ना लगे कि हम कहीं खो गए हैं,
क्या इनसे फिरसे मिलें और बताएं
कि हम बड़े हो गए हैं???
© सbr