Prasang
चल आज फिर से संग हो
बहोत बड़ा प्रसंग हो
गुफ्तगू की भंग हो
और पिस्ता मृदंग हो
इंसानियत की बात कर
तू कुछ सही हालत कर
जो देख चल रहा अभी
क्या मांगता दुआ वही ?
है रुद्र्रा रूप कांपती इंसानियत भी भागती
प्रचंड रूप काल का जो तू नहीं संभालता
फिर सोच ले यही अभी, जो आ गया तो ेएक बार
हर रक्त नाद हाहाकार हर रक्त नाद हाहाकार
इंसानियत की बात कर तू कुछ सही हालत कर
जो देखता तू स्वर्ग से तो देखता तू खुद यही
तू कौन सा ही...
बहोत बड़ा प्रसंग हो
गुफ्तगू की भंग हो
और पिस्ता मृदंग हो
इंसानियत की बात कर
तू कुछ सही हालत कर
जो देख चल रहा अभी
क्या मांगता दुआ वही ?
है रुद्र्रा रूप कांपती इंसानियत भी भागती
प्रचंड रूप काल का जो तू नहीं संभालता
फिर सोच ले यही अभी, जो आ गया तो ेएक बार
हर रक्त नाद हाहाकार हर रक्त नाद हाहाकार
इंसानियत की बात कर तू कुछ सही हालत कर
जो देखता तू स्वर्ग से तो देखता तू खुद यही
तू कौन सा ही...