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मन का पंछी
मन का पंछी ना जाने किसी और जाए
अपने ही मन को कभी कभी हम समझ ना पाए
कैद इस पंछी को कितना भी करना चाहो
हर बार पिंजरा तोड़कर ये बाहर आए
इच्छाओं का अंबार लगा हैं मन के अंदर
सबको पूरी करने की अभिलाषा मन को खाए
दिमाग कहता हैं की बिना समझे मत कर इनका पीछा
मगर मन की आंखों पे बंधी हैं पट्टी उसे नजर ना आए
दिल और दिमाग के बीच ये द्वंद पुराना हैं
इच्छाओं के साथ साथ ये भी बढ़ता जाए
एक पल के लिए भी ये शांत ना बैठे
ज़िंदगी के हर पहलु पे चिंतन करता जाए
अपने ही मन को कभी कभी हम समझ ना पाए
कैद इस पंछी को कितना भी करना चाहो
हर बार पिंजरा तोड़कर ये बाहर आए
इच्छाओं का अंबार लगा हैं मन के अंदर
सबको पूरी करने की अभिलाषा मन को खाए
दिमाग कहता हैं की बिना समझे मत कर इनका पीछा
मगर मन की आंखों पे बंधी हैं पट्टी उसे नजर ना आए
दिल और दिमाग के बीच ये द्वंद पुराना हैं
इच्छाओं के साथ साथ ये भी बढ़ता जाए
एक पल के लिए भी ये शांत ना बैठे
ज़िंदगी के हर पहलु पे चिंतन करता जाए
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