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सन्ध्या अरज
सन्ध्या की चित्रकारी से
मैं मांगती हूं फिर एक सवेरा
पक्षियों की गुंज से
मैं मांगती हूं फिर मधुर मिठास
नदियां सागर रेत से भरे आनंद
मैं मांगती हूं फिर अबूझी प्यास
फूलों की महक से रंग बिखरे
मैं मांगती हूं फिर ओस मोती
हर रोज़ सूरज और चांद से
मैं मांगती हूं फिर आसमां में आज़ बहार
दिल से शब्दों की बातें हसीन शाम
मैं मांगती हूं फिर हसीन नया सवेरा आज़
मैं मांगती हूं फिर एक सवेरा
पक्षियों की गुंज से
मैं मांगती हूं फिर मधुर मिठास
नदियां सागर रेत से भरे आनंद
मैं मांगती हूं फिर अबूझी प्यास
फूलों की महक से रंग बिखरे
मैं मांगती हूं फिर ओस मोती
हर रोज़ सूरज और चांद से
मैं मांगती हूं फिर आसमां में आज़ बहार
दिल से शब्दों की बातें हसीन शाम
मैं मांगती हूं फिर हसीन नया सवेरा आज़
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