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नज़्म✍️
कितने ख़्वाब, कितने लोग
इस दुनिया में जाने कितनी शक्लें
और इस भीड़ में तुम
मुझे ऐसे मिली
जैसे किसी अधूरे ख़्वाब को मायने मिल गए
मेरी शायरी के हर हर्फ
एक तुम्हारे ही जिस्म से लिपटे हुए
जैसे किसी अर्स को टूटे तारे मिल गए
मेरी मशरूफियत तुमसे हैं
मेरे ख्वाब तुमसे हैं
मेरी ज़िंदगी की तमाम रातें तुमसे हैं
मेरे हर सुकून का सिलसिला तुमसे हैं
कोई खालिस घेरे है मुझे
कोई कशिश तुमसे जोड़े है मुझे
तेरी नर्गिश मेरे हयात को मायने देती है
तेरे अक्स से आश्ना हूं मैं
तेरे लहजे के ख्वाबों में खोया मेरा दिया
तेरे आरिज, तेरा जबीं का
एहसास कोई सबा दे जाती है मुझे
तेरे सुर्ख होठों के अलावा कोई जाम नही चढ़ा मुझे
अभी भी कोई नशा तेरी बातों का है
कोई काफिला तेरी यादों का है
कुसूर नहीं आंखों की नमी का सारा
कुछ कुसूर बेमौसम की बारिश का है
कोई ख़्वाब इस जिंदगी से उधार लूंगा मैं
लिखकर सारी खामोशी का भर उतार दूंगा मैं
मेरे चाहने वाले मेरी काबिलियत पहचानते हैं
मेरे अश्क का पैमाना गले से उतार दूंगा मैं
तू मिली है मुझे किसी सौगात की तरह
तेरा हर बात पे जिक्र करना लाजमी है मुझे
बेफिजूल है मेरे लिए ये दुनिया
अब तो हर ख्वाब भी दायमी है मुझे
© Tanha_Mushafir

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