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अपनी चमक से बनी हूं
बहुत बार गिरी और गिर कर उठी हूं
हां मैं अपनी चमक से बनी हूं
लाख सताए है मुझे अंधेरों के साए
हर अंधेरे में उम्मीद की रोशनी से चली हूं
हाथों में अपने हाथों को थामे उम्मीद से दुनिया के रण में लड़ी हूं
अपने सपनो को जिंदा रखकर निडर मैं अड़ी हूं
हां मैं अपनी चमक से बनी हूं
दुनिया के सड़े विचारो की दुर्गंध से भिड़ी हूं
गंदी मानसिकता की आंखों से जली हूं
हर कम आंकने वाले की उम्मीद से कई बड़ी हूं
शरीर से कोमल मन से अडिग बनी हूं
हां मैं अपनी चमक से बनी हूं।

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अंजली राजभर