...

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रकीबों को मोहब्बत हो जाए
एक मेरी दुआ भी मुकम्मल हो जाए
मेरे रकीबों को भी मुहब्बत हो जाए
फिर आएगा लुत्फ़ जिन्दगी में बहुत
आँखों का सागर भी जन्नत हो जाए।

उनके जीवन का कैलेण्डर ठहर जाए
वादों की तय तारिखे तक बदल जाए
इंतजार की घङियां सदियाँ हो जाए
बदलते मौसम से हृदय भी दहन जाए।

तब शायद दर्द समझ पाए दीवानों का
फिर मर मिट जाना चाहेंगे परवानों सा
आँखों में आँसुओ का मेला होगा राही
जब हाल होगा फटेहाल फकीरों सा।






© Rakesh Kushwaha Rahi