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वो लडकी
हुस्न-ए-मलीका की तारीफ में क्या लिखूं ,
वो काली जुल्फों में उम्मीद बांधे बैठी है।
मुस्कुराहट के पीछे रहस्य गहरे छिपाये बैठी है।
इन कजरारी आंखो को इंतजार है शायद किसी का,
अपनी सादगी से ना जाने कितने लडके गिराये बैठी है।
यह लडकी ना जाने कितनो का चांद बनी बैठी है।
वो काली जुल्फों में उम्मीद बांधे बैठी है।
मुस्कुराहट के पीछे रहस्य गहरे छिपाये बैठी है।
इन कजरारी आंखो को इंतजार है शायद किसी का,
अपनी सादगी से ना जाने कितने लडके गिराये बैठी है।
यह लडकी ना जाने कितनो का चांद बनी बैठी है।
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