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मैं झांकती
मैं झांकती दरवाज़े पे दहलीज़ के इस पार ,
कब आओगे प्रियवर तुम लेके खुशियाँ हज़ार ।।

दिन बीते , महीनों गुज़रे गुज़रा साल दर साल ,
सोलह वसंत पार कर ली मैंने , मिलन को मन बेकरार ।।
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