...

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बारिश
जब प्यास लगे धरती को
बस बादल पीडा़ समझता है।
देख देख कर हालत उसकी
बूदँ-बूदँ कर बरसता है।
जानता है वो दर्द धरा का
तभी तो टूट बिखरता है।
कोई कली उसकी सूख ना जाए
संभल संभल कर चलता है।
खुद को कर देता वलीन धरा में
फिर पानी बनकर...