...

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वो...
तड़प तेरी, उसके दिल को भी तड़पाती है
कहे या ना कहे, हर सदा, दिल चीर जाती है

खामोश तू भी है, और वो भी गुमसुम सी है
चार नैनो की दरिया है कि सिमट ना पाती है

रखा हर भाव को दिल में, और अट्टहास किया
तेरे इस रूप में वो रोज़ उलझती सी जाती है

पिघलता रहा खुद में, कभी ना जिक्र किया
और वो तेरी उस कसक को जीती जाती है

महसूस हुआ अब विरह का आगमन तुझे
और वो उस पीड़ा में हर पल मरती जाती है

समझ गैर तू उसे, भूला कर सब जमाने का रहा
और वो खो कर खुद को शून्य में, जी सी जाती है


© * नैna *