...

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मेरा हश्र..
इश्क की राह में मैं अनजान था,
मालूम नहीं कैसे कोई खींच रहा मेरा ध्यान था।
ख्वाबों से सजाए बैग ले चल पड़ा,
छूट गया वो बस्ता मेरा,
जिसमें रिश्तों से भरा सामान था।।
कैसे से कैसा हो गया,
कैसा मेरा खानपान था ।
निकल पड़ते हैं आंसू सोचकर,
क्योंकि हर कोई मुझ पर कितना मेहरबान था।।
ना किसी से ताल्लुक ,
ना कोई जान पहचान था।
बेखबर था जमाने से,
बस आराम ही आराम था।।
उलझ पड़ा ना जाने किस कैदखाने से,
डूब के निकल ना पाया इस मयखाने से।।
पता चला ये रोग लेना नहीं आसान था,
पहुंचा दिया कहीं और नहीं,
वो जगह शमशान था।।
भर आई सबकी आंखे,
हश्र मेरा देखकर,,
झेल न सका गम मैं,
शायद इश्क में नादान था।।।
written by ( संतोष वर्मा)
आजमगढ़ वाले.खुद की ज़ुबानी


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