...

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सरस्वती मां‌ ने भी ये सोचकर‌ रों दिया...,
#WorldPoetryDay
कविता तब तक अधूरी है जब तक किसी की जिन्दगी न बदल दे,आज विश्व कविता दिवस के अवसर पर मेरी एक प्रस्तुती बदलाव केलिए।

एक बार तो सरस्वती मां‌ ने भी ये सोचकर‌ रों दिया
क्या जुर्म किया था इन लडकियों ने जो पढने का हक खों दिया
सब झुठी करते मेरी पुजा मैने ये स्वीकार कर लिया
मेरी करते पुजा पर पढने और बढने का अधिकार लडकियों को ना दिया।


मै...