कोई मिलता ही कहा अब अपना बनाने को
कोई मिलता ही कहा अब अपना बनाने को ।
कुछ दिखता ही कहां है इस ग़ैरत ज़माने को ।
अब तो हर कोई तनहा रहता है खामोशी से यहां
कोई तकलीफ नहीं करता किसी को अपनाने को।
...
कुछ दिखता ही कहां है इस ग़ैरत ज़माने को ।
अब तो हर कोई तनहा रहता है खामोशी से यहां
कोई तकलीफ नहीं करता किसी को अपनाने को।
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