माँ की लोरी
हिम पिघल पानी बन जाता,
नदियाँ व्याकुल हो जाती हैँ
वातसल्य प्रेम विभोर हो माँ
जब लोरी गुनगुनाती हैँ |
कड़कड़ाती ठंढ में गर्मी सा,
जलती लू में शीतल बयार बन
ठण्डक हमको पहुँचती...
नदियाँ व्याकुल हो जाती हैँ
वातसल्य प्रेम विभोर हो माँ
जब लोरी गुनगुनाती हैँ |
कड़कड़ाती ठंढ में गर्मी सा,
जलती लू में शीतल बयार बन
ठण्डक हमको पहुँचती...