...

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मुझमें मेरा क्या है?
मैं दीवानी,
मैं मतवाली,
मैं बावली,
करती रहती नादानी।

फिर मुझको,
बताए जाते सलिखे।
सिखाए जाते तमाम उसूल।

लड़की मैं,
शादी से पहले
बेटी।
हकदार मेरे पिता।

शादी बाद
बहू।
मैं पत्नी,
हकदार मेरे पति।

कभी मायके,
कभी ससुराल,
मैं बेघर।

मेरा नाम,
मेरी पहचान क्या है?
मेरी हैसियत,
मेरा औदा क्या है?
मेरा मान,
मेरा सम्मान क्या है?
दो घरों के बीच में,
मेरा अपना क्या है?

मैं किसी की
बेटी,
बहन,
बहू,
पत्नी,
मां,
भाभी,
चाची,
मामी ,
ननंद,
कहलाई।
कई रिश्तों में जोड़,
किस्तों में बाटी गई।

मैं, निढाल औरत
सबके लिए हाजिर,
खुद के लिए
क्यों नहीं जी सकती?
मैं;
मैं क्यों नहीं बन सकती?

मैं पूछती हूं !
मुझमें मेरा क्या है?

© ehsaas__e__jazbaat