...

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ये मुमकिन नहीं...
तुम्हारे दीदार के लिए सुबह-ओ-शाम, रात-दिन, आठों पहर तड़पते हैं,
ख्वाहिशें भी तुम्हारी आँखों के दरिया में डूबने की रखते हैं, मग़र
तुमसे नज़रे मिला लें, ये मुमकिन नहीं...
तुम्हारे सामने बैठकर, तुमसे घण्टों बातें करना चाहते हैं
तुम्हारे उन हाथों को अपने सीने पर रखकर ये भी कहना चाहते हैं, कि देख ना यार
देख ना ये दिल सिर्फ तेरे लिए ही धड़कता है
पर, कैसे करेंगे ये सब क्यूँकी
तुम कहो तो फ़लक तक को हम ज़मी पर उतार दें तुम्हारे लिए, मग़र
तुमसे नज़रें मिला लें, ये मुमकिन नहीं...
हसरतें हैं, कि तुम्हारे उन कानों के इस पार आए गालों पर
लटकते हुए उलझे जुल्फों को सिर्फ़ हम ही सुलझाएं
दिल चाहता है भी यूँ तो है हर पल, कि तुम्हारे उन दोनों ही नूरानी आखों में खो कर
हम उसकी नूर से ख़ुद को भर लें
पर कैसे कर पाएंगे हम अपने इस दिल की ख्वाहिशें पूरी, क्यूंकि
चांद को तो हम तुम्हारे कदमों में यूँ एक झटके में रख सकते हैं, मग़र
तुमसे नज़रे मिला लें, ये मुमकिन नहीं...
दिल-ओ-दिमाग़ में एक बात है, कि अगर हम आज रात सोए और सोए ही रह गए, तो
हमारी आख़िरी ख्वाहिशें भी यूँ होंगीं, कि खेले हम घण्टों तक पलकें ना झपकाने का कोई खेल
तुम्हारे साथ तुम्हारी ख़ूबसूरत आखों में आँखें डालकर, पर
हमारी ये आख़िरी ख्वाहिश भी शायद अधूरी ही रह जाएगी, क्यूँकी हम सब सब कुछ कर सकते हैं, मग़र
तुमसे नज़रें मिला लें, ये मुमकिन नहीं...

© Kumar janmjai