...

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इश्क़ है या इन्त़ेकाम है ये
ये समय कितना भी बुरा क्यूँ न हो,
उस समय से अच्छा है जब मैं तुम्हारे लिए रोई,,
ये हंसी कितनी भी झूठी क्यूँ न हो,
उस हंसी से सच्ची है जिसके साथ
न जाने मैं कितने दिन तक सोई,
ये ख्याल कितने भी अटपटे क्यूँ ना हो ,
उन बेबुनियाद ख्यालों से तो अच्छे हैं
जिनमें न जाने मैं कितने रातों तक थी खोई,
पर है अब कहानी थोड़ी बदल गई,
समा नया ये इन्तज़ार का मकान नया है।
मेरे इश्क़ का ये एक जहाँ नया है।
जरूर मैं कुछ पल को टूट गई,
पर समेटे अपने हर टूटे टुकड़े,
ये कांच की यादों से बना ,
इश्क़ का इंतकाम नया है।
अब होगी एक नई शुरुआत,,
बदले का ये शाम नया है।
लौटूंगी फिर उसी दुनिया...