...

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माना कुंठित नज़र नज़ारे का दौर है आज
माना देर हो रही थी पहुंचने की वहां
माना मुझे किसी के पास जाना था।

माना छोड़ देता बेटी को अकेला
पर मुझे भी तो खुद से नजरें मिलाने था।

माना बड़ा औपचारिक मंच था हमारा
पर आत्मा का आत्मा से रिश्ता पुराना था।

माना चंद दिनों की पहचान रही हमारी
पर मानवीय मूल्यों का कर्तव्य निभाना था।

माना कुंठित नज़र नज़ारे का दौर है आज
पर पवित्रता का मानक तो हमें सजाना था।

- डॉ. जगदीश राव 🌹🌹

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