...

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मेरी खुशी
कितनी अच्छी थी मैं बिन्दास मुस्कुराया करती थी
खुद हंसती औरों को भी हंसाया करती थी
फिर ना जाने कब इस दिल को तेरी आदत लग गई
और तुम ही मेरी खुशी का कारण बन गयी
अब न तुमसे कोई बात होती और न ही मैं खुश हो पाती हूं
बस अब तो मुस्कुराने के बहाने ढूंढती हूं
कभी लगता है मना लूं तुम्हें, कभी सोचती हूं ये दूरियां ही अच्छी जब मैं खुद को मजबूत बनाती हूं
मन करता है अपनी सारी खुशियां भी तुम पर वार दूं
कृष्ण और सुदामा जैसे अपनी मित्रता में भी उपहार दूं।
© 💥बावरी💥