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जितना पुण्य करोगे उतना ही लिखयेगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा
पाप किया तो पुण्य के मटकी में से वो घट जाएगा

जोड़ जोड़ कर पुण्य कमाओ
पाप के पीछे मत भागो
विलासिताएँ छोड़ के भैया
विषय भोग को तुम त्यागो
मात पिता की सेवा कर लो वो ही बस रहजायेगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा

क्यों जात पात का कंठी माला
गर्दन में लटकाए हो
हर मानव कर्तव्य विमुख हो
क्यों संकल्प उठाये हो
छोड़ो पाप की गठरी सर का बोझ कम जाएगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा

यह पंचतत्व से बना घरौंदा
क्यों इसको बेकार करें
परब्रह्म का ज्योत जगाकर
उज्वलता साकार करें
जीवन मोह,मद, लोभ में गुजर जाएगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा

एक दिन राजा हरिश्चन्द्र को
मोह लिया था रोहित ने
ऋषि स्वप्न में सबकुछ मांगे
दान दिया उस मोहित ने
सत के मार्ग सदा ही खुला रह जायेगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा

एक दिन इस तन में ही
अपना बेटा आग लगाएगा
पंचतत्व का देह अप्रतिम
पंचतत्व बन जाएगा
क्या-क्या कर्म किये हो सब का मान रखा जाएगा
जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा


जितना पुण्य करोगे भैया उतना ही लिखायेगा
पाप किया तो पुण्य के मटकी में से वो घट जाएगा

~आचार्य अभिजीत