...

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"जीने की हसरत"
जीने की हसरत लिए हर बार मर रहे हैं,
बेवफ़ा लोगों पे भी ऐतबार कर रहे हैं..!

वो लूट रहे हैं सुख चैन बना कर जीवन को रैन,
ढलती ख़्वाहिशों को हमारी अँधकार कर रहे हैं..!

हम जियें तो जियें कैसे इन हालातों में ऐसे,
ख़ुद को जला कर प्रकाश बार बार कर रहे हैं..!

गिरते पड़ते लड़खड़ाते क़दमों को हिम्मत का,
फिर से बुलंद कुछ यूँ अख़बार कर रहे हैं..!

रोज़ की वही कहानी ख़त्म होती ज़िंदगानी में,
जीने की इच्छाओं का प्रबल संचार कर रहे हैं..!

किसी से नहीं कहना यूँ भावनाओं में बहना,
नहीं सहना अब ज़ुल्म इस पर विचार कर रहे हैं..!

मुँह तोड़ जवाब देना हैं उन सभी को जो,
हमारी ख़ामोशी पे अत्याचार कर रहे हैं..!
© SHIVA KANT