...

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तुम हमारी हो।।
कुछ हुस्न चुराकर तुमसे
एक नज़्म लिखी है हमने,
शब्दो मे बया करने की,
गुस्ताखी करी है हमने

तुमको मैं बयां कर पाउ,
इतनी मुझमें कला नही,
मैं जिसपर तुम्हे उतार सकूँ,
वो कागज़ आज तक बना नही,

आँखों से बालों तक कि
हर चीज़ कयामत है जाना...
गालो से होंठो तक की भी,
अपनी ही नज़ाकत है जाना...

कितनो का दिल लुटोगी तुम,
कितनो को आशिक बनाओगी,
सब यही जानना चाहते है,
तुम किसके घर को सजाओगी,

हर जाम तुम्हारे नाम पे है,
हर साक़ी तुम्हारा प्याला है,
हर एक शहर की धड़कन तुम,
हर कोई तुम्हारा मतवाला है,

हाथो पर दिल्ली दिल दे दे,
आँखों से यू.पी घायल है,
होंठो पर मरता है पटना,
मुंबई भी तुम्हारा कायल है,

काची, रांची, सूरत को,
आँचल में लपेटे चलती हो,
कलकत्ता,देहरादून,को तुम,
पायल में समेटे चलती हो,

तापमान तुम्हारा जानेमन,
उदयपुर की गर्मी जैसा है,
होंठो की बनावट लिखूँ क्या..?
कश्मीर की नर्मी जैसा है,

दबदबा तुम्हारा ओ जानम,
मदुरई की रानी जैसा है,
हर एक शब्द, हर एक किस्सा,
प्राचीन कहानी जैसा है,

उत्तर से लेकर के दक्षिण तक,
आशिक ही आशिक बिखरे है,
खाने, पीने और पहनावे में,
लखनवी नवाब से नखरे है,

उस ओर से पागल निकले है,
जिस ओर से हँसकर गुज़री हो,
आजमगढ़ की कलम से आज कही,
मुम्बई के प्रपत्र पे उतरी हो,

आशिक के इन गलियारों में,
डुगडुगी पीटा दी है हमने,
जिन शहरों से तूम गुज़री थी,
वहां तस्वीर लगा दी है हमने,

हाँ माना हमने सुंदर हो,
ख्वाबो की राजकुमारी हो,
बस बोल दिया है हमने ये,
इस जनम में अब तुम हमारी हो।।

© Vivek

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