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गंगा
गंगा
जहां जन्मी सभ्यताएं
पला बढ़ा इतिहास
सांसें ले रहा है वर्तमान
और गूंजेगा भविष्य
आदि अंत दोनों समाहित हैं
इसकी बहती धारा में

गंगा
ऊंचे पर्वतों के बीच
उच्श्रृंखल वेग से बहती
काटती जाती चट्टानों को
अपनी असीम शक्ति से
रास्ते में आने वाला
सब कुछ बहा ले जाती है

गंगा
उतरती है जब मैदानों में
काटती जाती खुद को ही
और गहरा करती जाती है
कभी तोड़ देती है तटबंध
कभी समा लेती खुद में
न जाने कितनी...