...

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कॉमरेड
लेटे हुए बिस्तर पे,
गौर फरमा रहाथा अपनी सोचने के स्तर पे,
अभी अटकी है स्तन में,
आगे जा नही; पा रही तन से।

बैठे बैठे थक जाता,
थक के सो जाता,
सोते सोते थक जाता,
थक के बैठ जाता।

न दुश्मनी; ना दुश्मन,
फिर भी डर लगता हर क्षण,
न दोस्ती; ना दोस्त,
फिर भी जी रहा हु जिंदगी मस्त।

बारिश न मुझे भाती,
और न गर्मी सताती,
आता पसीना थंड मे मुझको,
पर कुछ फर्क न पड़ता मेरे लंडको।

मोबाइल तो है; यूही बदनाम,
कर रहा वो; उसे बताया गया काम,
जब खुदपरही नहीं है लगाम,
तो झाट मिलेगा अच्छा परिणाम।

जिंदगी में सब हिलराहा,
बस मैं ही नही खिलराहा,
शाम को होता मेरा सवेरा,
अंधेरे से भरा मेरा...