मैं इस प्रजातंत्र का ग्रंथ हूं हां मैं संविधान हूँ.......✍🏻
मैं इस प्रजातंत्र का ग्रंथ हूं हां मैं संविधान हूँ
मैं अपने में आज भी इक मुकम्मल बयान हूँ
मुझमें लिखा हर लफ़्ज़ गणतंत्र की महक हैं
मैं ही धरा हूँ, मैं ही लोकतंत्र का आसमान हूँ
हर हाथ में अलम है पर वतन परस्ती का शौर नहीं
गुजरते हुए वक़्त के साथ आज सिर्फ मैं मेहमान हूँ
आज - कल वो दौर नहीं और ना ही वो बात रहीं अब
सबके अधिकारों के लिए बुना गया मैं वो संविधान हूँ
पर पता नहीं कब मैं इस नफ़रती बाज़ार...
मैं अपने में आज भी इक मुकम्मल बयान हूँ
मुझमें लिखा हर लफ़्ज़ गणतंत्र की महक हैं
मैं ही धरा हूँ, मैं ही लोकतंत्र का आसमान हूँ
हर हाथ में अलम है पर वतन परस्ती का शौर नहीं
गुजरते हुए वक़्त के साथ आज सिर्फ मैं मेहमान हूँ
आज - कल वो दौर नहीं और ना ही वो बात रहीं अब
सबके अधिकारों के लिए बुना गया मैं वो संविधान हूँ
पर पता नहीं कब मैं इस नफ़रती बाज़ार...