...

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जिसमें ठीक मैं लगती थी...
गुज़ारा है वो वक़्त भी जिसमें ठीक मैं लगती थी,
जश्न में भी रही तन्हा जिसमें शरीक मैं लगती थी।

अपना जताने वाले कुछ लोग भी होते धोखेबाज़,
रह दिल में रही दूर जिसमें नज़दीक मैं लगती थी।

क़ुर्बान की है कई बार अपने हिस्से की ख़ुशियाँ,
मेरी थी वह रौशनी, जिसमें तारिक मैं लगती थी।

दिल के रिश्ते में भी लोग करने लगते हैं व्यापार,
मेरा था उस पर हक जिसमें भीक मैं लगती थी।

क्यों ऐसा दिल पाया, जो मानता नहीं बुरा 'धुन',
बड़ा रहा किरदार, जिसमें बारीक मैं लगती थी।
© संगीता साईं 'धुन'

तारिक - अँधेरा
भीक- भीख

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