अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं...✍️
अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं
ख्वाबों की छतरियों तले
जब कोई मेरी उदासी का
सबब पूछता है
अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं
किसी जिंदान में सदियों से बैठे
किसी मुजारिम की उदास आंखों से
निकलती हुई बूंद
जब उसके गालों को सहलाती है
या किसी अनचाहे मौसम की
कोई बहार मुझे पुकारती है
अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं
अर्स के मानिद कोई था मेरे लिए
कभी उसकी याद में
तो कभी उसके साथ गुजरे लम्हों में
खोने की तलब जब बेचैन...
ख्वाबों की छतरियों तले
जब कोई मेरी उदासी का
सबब पूछता है
अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं
किसी जिंदान में सदियों से बैठे
किसी मुजारिम की उदास आंखों से
निकलती हुई बूंद
जब उसके गालों को सहलाती है
या किसी अनचाहे मौसम की
कोई बहार मुझे पुकारती है
अक्सर खामोश हो जाता हूं मैं
अर्स के मानिद कोई था मेरे लिए
कभी उसकी याद में
तो कभी उसके साथ गुजरे लम्हों में
खोने की तलब जब बेचैन...