...

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गणेश विसर्जन
बस, विदा किया और भूल गए
इतने दिनों तक सेवा की
पूजा, प्रार्थना, अर्चना की
मोदक, फूल, हार अर्पित किए
सर पर रख लाए, विराजित किया
सर पर रखा फिर विसर्जित किया
रोज़ मांगा कुछ न कुछ तुमसे
रोज़ कोई दुआ की सबके लिए
और फ़िर, छोड़ आए तुम्हें
गलती तुम्हारी नहीं है
व्यवस्था की है, जिसने
नियमों में बांध दिया परम्परा को
नदी, तालाब, सागर सबको
बचाने की खातिर तुम्हें
यूं ही विसर्जित करा दिया
घुटनों तक पानी में
तुम यूं अधडूबे पड़े रहोगे
और हम कुछ नहीं कर पाएंगे
हम इंसान वैसे भी विदा करके
भूल जाते हैं अपनों को
© अlpu



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