...

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ऐ मेरे महबूब...
ऐ मेरे महबूब...
मना लेते हम तुमको
अगर तुम पास होते
युँ दूर रहकर तुम हमको
क्यों हो इतना सताते,
किस गलती की तुम हमें
इतनी बड़ी सजा दे रहे हो
बिन बताए तुम हमे
क्यों गैर बना रहे हो,
नहीं सह पाएंगे हम
तुम्हारी जुदाई
हमारे बेइंतहा प्यार के खातिर
तुम हमको माफ कर दो,
अब तो झुक कर माफ़ी भी माँग ली
फिर क्यों बिन सर पैर की
बात को बडी़ बात बना रहे हो
ऐ मेरे महबूब...
तुम राई का पहाड़ बना
हमें क्यों इतना तड़पा रहे हो।

© Sankranti chauhan