मै शिव स्वीकारा प्रेम तुम्हरा
मै वैराग्य वन विचरण करता,
भस्म धारी वनवासी हूं।
तुम महलों की राजकुमारी,
मैं कैलाश का वासी हूं।
ना मेरा कोई घर द्वार,
ना किसी रंग रूप में हूं।
हूं सब कुछ त्यागा तपसी मै,
मै निरंकार स्वरूप में हूं
तुम महलो मे रहनेवाली,
वन में न रह पाओगी,
मैं भूत प्रेत संग रहता हूं,
तुम जिन्हे देख डर जाओगी।
तुम पार्वती हो या सतीस्वरूप,
मैं तुम्हें नहीं अपनाऊंगा।
मैं वैराग्य तप में हूं लीन,
कोई गाथा न दोहराऊंगा।
सुनकर बातें ये...
भस्म धारी वनवासी हूं।
तुम महलों की राजकुमारी,
मैं कैलाश का वासी हूं।
ना मेरा कोई घर द्वार,
ना किसी रंग रूप में हूं।
हूं सब कुछ त्यागा तपसी मै,
मै निरंकार स्वरूप में हूं
तुम महलो मे रहनेवाली,
वन में न रह पाओगी,
मैं भूत प्रेत संग रहता हूं,
तुम जिन्हे देख डर जाओगी।
तुम पार्वती हो या सतीस्वरूप,
मैं तुम्हें नहीं अपनाऊंगा।
मैं वैराग्य तप में हूं लीन,
कोई गाथा न दोहराऊंगा।
सुनकर बातें ये...