...

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साथ... क़लम का
सफ़र शुरू हुआ था ..वक्त की नज़ाकत के साथ
आदत कब बन गया पता नहीं
भान तो मंजिल का भी नहीं है ;
पर इस सफ़र ने क्या दिया ...मुझे
ये शब्दों से बयां नहीं
बेशक हसरतें बेहतरीन की...