...

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मेरी पहचान
कद छोटा हे पर मेरी आवाज ही मेरी हस्ती मेरी पहचान हे ..
मेरी जुबा, मेरे शब्द, मेरे लेख, मेरी कलम मेरी जान मेरी अभिन्न अपरिमित पहचान हे ..

स्वरूप आकर मेरा एक परिणाम में भौतिक रूप से आंकलित जरूर है
पर मेंरी कथनी, करनी, वाणी ,लेखनी मेरी अपनी असीमित अमुल्ये धरोहर हे
मुझे मिली इश्वरि वर प्रदत अच्छी भूरी मेरी अपने व्यक्तित्व की उझलि, दुन्धुली, धूमिल मेरे स्वयं की अपनी औची ,खोटी ,ऊँची एक पहचान हे ..

रवि