...

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सियासी_गलियारों_में_ये_कैसी_महक_है
ये तेरी कलाकारी की अदाकारी क्या खूब है
झूठी मूठी फ़नकारी की चिंगारी क्या खूब है
चारों तरफ सियासी रंगमंचों की इक कहानी है
अजी दुनियादारी की समझदारी क्या खूब है

ना जाने किस ओर इन फिज़ाओं का रुख है
आज ख़रीदारी की चार-दीवारी क्या खूब है
सियासी गलियारों से उठती ये कैसी महक है
यहां तेज़-रफ़्तारी की निगह-दारी क्या खूब है

बदलते मिज़ाजों के हाल-ए -हालात मशहूर है
झूठी मूठी तरफ़-दारी की अय्यारी क्या खूब है
इसके उसके लहज़े से सजें रंगमंचों का तमाशे
इशारों की कलाकारी की अदाकारी क्या खूब है

निगाहों में कुछ तो लबों पे कुछ ओर सवाल है
आजकल अख़बारी की ग़म-ख़्वारी क्या खूब है
ये मुस्कुराती हुई अदाकारी क्या बंया कर रही है
हाय! ये सियासी बीमारी की बाज़ारी क्या खूब है

यहां हर कोई अपना अपना मंसूबा लिखने चला है
ख़ामोश से लुटती हुई ख़ुमारी की सवारी क्या खूब है
फ़िक्र मंदों के शहर में आज ये कैसे तसल्लियों बयां है
चारों तरफ सियासी ब्योपारी की ख़रीदारी क्या खूब है

{ग़म-ख़्वारी :- सहानुभूति , ब्योपारी :- सौदागर}

@My_Word_My_Quotes
© Ritu Yadav