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कागज़ पर कहां सब कुछ लिखा पाता है
कागज़ पर सब कुछ कहां लिखा पाता है,
हार जो चुके अंदर से, सब लम्हा चीर देता है;
उन बातों को भी कहां भुलाया जाता है,
जिससे सारे सपने संजोए, दिल टूट जाता है;

वक्त ना जाने कितना लगेगा, सब सही होने में,
अब कहां मन होता हैं, ज़िन्दगी को ज़ीने में;
जिन्होंने अपने हाथों से बड़ा किया, वहीं हैं सब मेरी दुनिया में,
यह ख्वाहिश है मेरी, कि नाम उनका करें और हो पुरी इस ज़िंदगी में;

कितने चेहरे लोग साथ लेकर घुमते है
और फिर मासूम बनकर रहते है;
कौन यकीन करें इनपर, जो ये है
इनका फितरत ही, रंग बदलना का है;

बार-बार क्यों मन को चोट पहुंचाए
जब सच्चाई से वाकिफ हो आए;
क्यों इनके वज़ह से ज़ीना छोड़ दें
जब खुद ही अपना इन्द्रधनुष बना दें।

© sritika

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