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संग था
रेत की तरह जीवन कितना सरल था
दो लफ्ज़ भी जहा अहम था
इंसान को इंसानियत से भर्म था
ना मुस्किल ना डर का संग था
खुली आसमा मैं सास लेने का मन था
और टूटी हुई आस भी जमाने के ही संग था
वो लफ्ज़ कितना अहम था
मुस्कुराते चेहरे कितने के संग था
आंसू तो बहुत कम के अंग था
और न मिले रोटी फिर किसको ग़म था
रूठे हुए को मानने का किसको मन था
वो पल और वो खुओब कितना अहम था
© rsoy
दो लफ्ज़ भी जहा अहम था
इंसान को इंसानियत से भर्म था
ना मुस्किल ना डर का संग था
खुली आसमा मैं सास लेने का मन था
और टूटी हुई आस भी जमाने के ही संग था
वो लफ्ज़ कितना अहम था
मुस्कुराते चेहरे कितने के संग था
आंसू तो बहुत कम के अंग था
और न मिले रोटी फिर किसको ग़म था
रूठे हुए को मानने का किसको मन था
वो पल और वो खुओब कितना अहम था
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