...

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सोचने लगे हैं लोग
बेहतर तो है , सोचने लगे हैं लोग
दुनियादारी की बातें

विडम्बना तो न सोचने वालों की है

मुसीबत मोल ले लेते हैं
जर जोरू और जमीन
काम आयेंगे एक दिन
खुद को
भला क्यूँ न सोचें ?

बेहतर तो है
सामाजिकता के बंधन , घर गृहस्थी
आखिर निभानी पड़ती है

गिरते है सड़क पर रोज़
सैकड़ो तो क्या ?
आखिर दूसरा कोई उठा ही देता है
ड्यूटी पर अगर समय से नहीं पंहुचे
तो बॉस थोड़ी ही मेहरबानी करेगा
अच्छा काम कहकर

बेहतर तो है
आखिर क्यूँ न सोचें ?
दुनियादारी की बातें
फर्क इस सवाल का नहीं
और न ही सोच में गड़बड़ी है
आध्यात्मिकता और मानवता का पाठ पढ़ रखा है

कुछ हद तक ठीक होगा
उनके लिए भी
और हमारे लिए भी
जो न सोचते है
दुनियादारी की बातें
नज़राना हर काम की अब
एंटीबैटिक दवा है
ऊपर से नीचे तक
सब खाते है
खुद खिलाकर आते है कुछ
तो खाएं क्यों नहीं ?

बेहतर तो है , सोचने लगे हैं लोग
दुनियादारी की बातें
समझने भी लगे है , कुछ हद तक
विडम्बना तो न सोचने वालों की है
अब ख्यालात के हालात बदल गए है
सब जेनेरेशन गैप का चक्कर है
विचारों के खेल में अब मेल नहीं रहा
कदाचित उल्टी गंगा बहने लगे
कोर्ट कचहरी के मामले में
कहीं लफड़ा पर गया तो

बेहतर तो है , सोचने लगे हैं लोग
दुनियादारी की बातें

#people#busylifestyle##commonthought