...

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'निशान'
निशान हमारे दिलों पर रह जाते हैं,
बन जाते हैं जिनके 'अपने' हम जैसे लोग,
दूर उनसे कभी भी कहाँ जा पाते हैं ?

सीढ़ियाँ चढ़ते जाते हैं उम्र की भले ही,
बचपना अपना लेकिन भूला कहाँ पाते हैं ?

मिलते हैं उसी गर्मजोशी से वर्षों बाद भी,
शिकायतें, उलाहने जैसे शब्द ज़ुबां पर हमारे कहाँ आते हैं !

© Aprajita