...

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चौगान ( वह मैदान जिसके चारों तरफ राह निकले )
वह धुंधली सी यादें, वह चौगान..
वह नीम का पेड़.. जिसके छांव तले बैठे,
कुछ उम्रदराज.. खेलते पत्ते,
पास की सीढ़ियों पर बैठे.. सरकारी बेरोजगार बतियाते जीवन के गंभीर मुद्दे;

सहसा चला आता कोई अनजान..
पूछता पता,
ताव देकर मूछों पर उठते एक भाई साहब, पका कर यहां वहां की बातों से.. छोड़ आते उस पते पर,

टूटने को आतुर कुछ पुराने मकान,
बयां कर रहे अपना अस्तित्व..
कि यहां भी कभी बसेरा था...!
© अनकहे अल्फाज़...

#memories #writco