...

10 views

मित्र
स्वार्थ मे लिपटी मित्रता की भी मर्यादा होती है जैसे व्यपारियों की मित्रता , राजनीतिक मित्रता
पर आपको बता रहा हूँ
जिस मित्रता मे प्रेम समाहित हो वहाँ दो मित्र अलग नही माने जाते है।
मित्रता तबतक नही हो सकती जबतक
दोनो के बिच कोई भेद हो
ऐसे मित्र कभी नही बनाईए जिसके बारे मे आप
कुछ भी नही जानते ।
यदि एक व्यक्ति आपसे भेद रखता हो,
वो कभी भी आपका अहित कर सकता है
सच्चे मित्र वही है जो आपसे किसी भी सूरत मे अलग न हो सिर्फ उनके शरीर अलग होते है
कृष्ण और अर्जुन भी मित्र थे और कर्ण और दुर्योधन भी मित्र थे, पर दोनो कि मित्रता मे
विशाल अंतर था, उधर कृष्ण और सुदामा भी मित्र थे, जहाँ अर्जुन कृष्ण की हर बात को आंखे बंद करके मान लेते थे ये सोचकर की मित्र उनकी सदैव भलाई ही सोंच सकते है,
और कर्ण दुर्योधन के हित समझकर भी उसके
गलत विचारों का खंडन नही करता था।
आप सोचिए क्या आपके पास कोई मित्र है वो किस तरह के है??
और आप किसीके कैसे मित्र है ??
अकेले रहना अति उत्तम है पर किसी गलत
व्यक्ति से मित्रता करके रहना अपने जीवन को नष्ट करने के बराबर है