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उड़ा ज़ुल्फ़ों का आज बादल जमीं पर
उड़ा ज़ुल्फ़ों का आज बादल जमीं पर
अँधेरा किया उसका काजल जमीं पर

लिया मोह मन को दिखा नाच अपनी
छमाछम बजाती है पायल जमीं पर

चला तीर ज़ख्मी किया है नयन से
पड़े है यहाँ होके घायल जमीं पर

दरस बिन तुम्हारे नहीं दिल है लगता
रहे घूमते होके पागल जमीं पर

अकेला हूँ आशिक मेरी भूल है ये
पड़े लाखों है उसके मायल जमीं पर

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
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